छब्बीस वर्षीय निखिल सब हासिल कर चुका था। अच्छी नौकरी, गाड़ी, बड़ा घर, बढ़ता हुआ बैंक बैलेंस, सबकुछ। मम्मी पापा उसकी तरक्की से खुश थे और अब शादी करवा कर पूरी तरह निश्चिन्त होना चाहते थे। लड़की ढूंढ़ने के लिए उसने ऑनलाइन डेटिंग आजमाया। एक लड़की उसे पसंद आई, जिसने निखिल को पसंद किया भी, पर उसे सिर्फ भौतिकी से प्यार था। अतः निखिल ने उससे रिश्ता तोड़ लिया।
इस सब प्रक्रिया में छह महीने बेकार हुए ज़रूर, पर अब निखिल जान गया था कि उसे ऐसी साथी चाहिए जो सिर्फ उसे प्यार करे, न कि उसकी भौतिकी से।
अब उसने लड़की ढूंढ़ना मम्मी पापा पर छोड़ दिया। उसे उम्मीद थी कि वे उसके लिए एक अच्छी लड़की पसंद ज़रूर करेंगे।
एक वीकेंड की शाम निखिल जब ऑफिस से लौट रहा, तब बीच रास्ते में पावरकट से लैंप पोस्ट ऑफ हो गए। उसकी बाइक की हेडलाइट से सड़क पर पूरी रोशनी नहीं हो पा रही थी। हलके अंधेरे में उसने एक लड़की को रोड क्रॉस करते देख ज़ोर से ब्रेक लगाया। अचानक हुए इस ‘एक्सीडेंट’ से लड़की भी घबरा गई और तेज़ी से दूसरी ओर भागते हुए उस पार पहुंच गई।
अंधेरे में फैली हुई आँखों से निखिल ने देखा कि भागती हुई लड़की के बैग से एक बड़ा पैकेट गिरा था। उसने पैकेट उठाया और लड़की की दिशा में बाइक मोड़ दी।
***
लड़की का पीछा करते हुए निखिल एक हॉस्पिटल पहुंचा। उसने पैकेट लिया और अंदर गया।
“एक्सक्यूज़ मी…सुनो…” निखिल ने लड़की को पुकारा पर उतनी भीड़ में किसे क्या पता चलना था। वह लड़की के पीछे गैस्ट्रो डिपार्टमेंट तक आ गया।
“आपने उस फार्मेसी से जो दवाइयाँ मंगवाई थी वो…” कहते हुए लड़की ने बैग में हाथ डाला तो वह हड़बड़ा गई। बैग में दवाई का पैकेट नहीं था। तब तक निखिल वहाँ आ पहुंचा।
“ये शायद आपका है…” उसने वह पैकेट लड़की को दे दिया।
“प्रियंका…” बिस्तर पर लेटी एक महिला ने आवाज़ दी।
“हाँ मम्मी,” लड़की अपनी माँ के पास पहुंची।
“क्या कहा डॉक्टर ने?” उसकी माँ ने पूछा। तब तक निखिल चला गया, पर प्रियंका का नाम उसके मन में गूँज गया था और उससे हुई मुलाकात उसके मन में फ़िल्म की तरह चल रही थी।
2 महीने बाद…
निखिल एक पार्क से गुज़र रहा था कि तभी उसकी निगाह एक अकेली बैठी लड़की पर पड़ी। उसे देख वह ठिठक गया और याद करने लगा कि वह कौन थी। याद आते ही वह तुरंत उसके पास आया।
“तुम प्रियंका हो न?” उसने बेंच पर बैठते हुए पूछा। “अब तुम्हारी मम्मी कैसी हैं?”
“तुम वो तो नहीं जो उस शाम हॉस्पिटल में दवाई का पैकेट लाए थे?” प्रियंका देखते ही पहचान गई, पर उसे नाम नहीं पता था। “तुम्हारा नाम…”
“निखिल।”
“अब मैं अनाथ हूँ,” प्रियंका ने चेहरे पर बिना किसी भाव के कहा।
“मतलब?” निखिल को समझ नहीं आया कि एक व्यस्क व्यक्ति अनाथ कैसे हो सकता है?
“मतलब मेरे मम्मी पापा नहीं रहे,” वह बोली, इस बार उसके स्वर में दुख था। “परिवार की वैल्यू तभी समझ आती है जब हम किसी प्रियजन को खोने के कगार पर हों। तुम्हें मेरा अनाथ होना समझ नहीं आया मतलब तुम्हारे पेरेंट्स स्वस्थ हैं, है न?”
निखिल ने आश्चर्य से सिर हिलाया। उसे ऐसे जवाब की उम्मीद नहीं थी। पर उसे एक बात अच्छे से समझ आ गई थी।
जो परिवार को सबसे ज़्यादा वैल्यू देती हो, वही उसकी सबसे अच्छी जीवनसाथी हो सकती थी।
“तुम्हारी मम्मी की अंतिम इच्छा क्या थी?” निखिल ने पूछा।
“जब वे बीमार हुईं, तब डॉक्टर ने कहा था कि उनका लिवर कभी भी फेल हो सकता है। दवाई के असर से वे दो साल जी गईं पर…”
“पर क्या?”
“वे मेरी शादी नहीं करवा सकी।”
निखिल सुनता रहा।
“मेरे लिए परिवार ही सबकुछ है। अगर मैं शादी न करूँ तो मेरे पास परिवार नहीं होगा, और बिना परिवार कोई जी नहीं सकता। पापा तो कोरोना में गुज़र गए, तबसे मम्मी पीछे पड़ी थीं कि शादी करो, घर बसाओ। तब वे स्वस्थ थीं तो मुझे समझ नहीं आया, जब लिवर ख़राब हुआ तो मैं समझी।”
प्रियंका एक बार में सब बोल गई। निखिल सब सुनता रहा।
“ओह्ह मैं भी क्या बोले जा रही हूँ…” अचानक उसे एहसास हुआ कि वह इतना कुछ न जाने किसे सुना रही थी।
“प्रियंका,” निखिल ने कहा। “मेरे घर आओ। मेरे मम्मी पापा से मिलो। वे मेरी शादी के लिए लड़की ढूंढ रहे हैं। शायद तुम्हें पसंद करें।”
“तुम किसे पसंद करते हो?”
“मैं तुम्हें पसंद करता हूँ।”
“कब से?”
“बस अभी से। जब तुमने मुझे परिवार की वैल्यू समझाई तब से। मुझे ऐसी जीवनसाथी चाहिए जो भौतिकी से ऊपर उठे, और वो तुम हो।”
प्रियंका मान गई।
***
निखिल ने प्रियंका की मुलाकात अपने मम्मी पापा से करवाई। उसके विचारों से वे काफ़ी प्रभावित हुए।
“बहुत अच्छे संस्कार पाए हैं तुमने,” निखिल की मम्मी ने कहा।
“तुम्हें बहू बनाने में हमें बहुत खुशी होगी,” पापा बोले।
एक शानदार समारोह में निखिल और प्रियंका एक दूसरे के हुए। पहली रात भी उन्होंने एक दूसरे को जानने में बिताई।
अब वे एक नए जीवन के लिए तैयार थे।
समाप्त
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