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रंग बिरंगी मैरिड लाइफ 3

जनवरी 2022

कोरोना खत्म हो चुका था। लॉकडाउन खुल गया था।

अब सुरभि हनीमून की इच्छा जता रही थी। लोकेशन सामान्य थी पर लोकेशन की इच्छा करने का उसका तरीका विचित्र था।

“कौस्तुभ!” उसने मुझे पुकारा जब मैं सोने की तैयारी कर रहा था।

“हम्म!” मैंने चादर ठीक करते हुए कहा।

“हनीमून चलें?” वह थोड़ा करीब आई।

“किधर?” मैंने लेटते हुए पूछा।

“मुझे ससुराल देखना है,” उसने कहा।

“क्या मतलब?” मैं हैरानी से उठ बैठा।

“मतलब उत्तराखंड देखना है,” सुरभि ने एक्सप्लेन किया। “मैं शिमला गई हूँ, कुल्लू मनाली गई हूँ पर नैनीताल या मसूरी नहीं गई। और अब मैं देहरादून के परिवार की बहू हूँ तो उत्तराखंड मेरा ससुराल हुआ न?”

“क्या लॉजिक है यार!” मैं आँखें फाड़े उसे देखता रहा। फिर जैसे तैसे संयत हुआ।

“अभी सोने दो,” मैं वापस लेट गया। “पहले पूरा प्लान करना होगा कि जाना कहाँ है, खर्चा कितना लगेगा और सबसे पहले हमें लीव मिलेगी भी या नहीं।”

“लीव तो बस बहाना है, तुम्हें तो पैसा बचाना है,” उसने मुँह फेर लिया। “कंजूस को अगर गोवा के लिए बोलो तो पैसा तो हाथ का मैल है।”

“ओये!” मैंने उसे अपनी ओर खींचा। “मैंने आज तक गोवा की शक्ल नहीं देखी। माना मुझे गोवा जाना है पर तुम ऐसा नहीं कह सकती। दिल्ली से गोवा आने जाने में जितना खर्चा होगा उतने में तो पूरी फैमिली नैनीताल घूम आएगी।”

“तो दिखाओ मुझे नैनीताल की नैनी झील।”

“सुबह बात करना,” मैंने लाइट ऑफ कर दी। “पहले तुम स्कूल से लीव लो।”

“कंजूस,” वह मुँह फेरकर सो गई।

***

सुरभि ने मुझे झींझोड़कर जगाया। मैंने देखा कि तब साढ़े चार बज रहे थे।

“सोने दो न,” मैंने झल्लाते हुए कहा। “दो घंटे बाकी हैं अभी।”

“देखो कौस्तुभ,” उसने थोड़ी नाराज़गी और थोड़ी शरारत के भाव से कहा। “तुम मुझे हनीमून के लिए ससुराल तो लेकर जाओगे नहीं। और अभी वहाँ का सब कुछ करने का मेरा मूड यहीं हो रहा है। तो… तुम समझ ही गए होगे?”

“ठीक है यार मैं तुम्हारा मूड नैनीताल में ठीक कर दूंगा,” मैंने करवट बदलते हुए कहा। “दो घंटे बाद जगा देना।”

“हुँह! कितना आलसी है ये!”

“आलसी किसे कहा?” मैं झटके से उठ बैठा।

“तुम्हें!” सुरभि भी जैसे लड़ने को तैयार बैठी थी।

“विल यू प्लीज एक्सप्लेन कि मैं आलसी कैसे हुआ?”

“एक तो तुम मेरा मूड बिगाड़ते हो,” उसने धीमी आवाज़ में कहा।

“तुम्हारा कुछ ज़्यादा ही मूड है,” मुझे भी अब कुछ फील हो रहा था पर मैं खुद को नियंत्रित किये हुए था। “लेकिन मेरे पास प्रोटेक्शन नहीं है।”

“तो क्या हुआ,” वह उठी और अलमारी से उसने एक टेबलेट निकाली। “मेरे पास प्रीकॉशन है।”

“सुधर जाओ!” मैंने उसे अपनी ओर खींच लिया। “तुमने पहली रात कुछ नहीं किया तो इसका मतलब ये नहीं कि हर सुबह कुछ होगा।”

अगले दो घंटे हम एक दूसरे में खोए रहे।

***

नाश्ते के बाद मैं फोन देख रहा था। पापा को मैं फोन में कुछ ज़्यादा बिज़ी लगा।

“गूगल बाबा से क्या इन्क्वायरी कर रहे हो, कौस्तुभ?” पापा ने पूछा।

दिल्ली से नैनीताल जाने का खर्चा देख रहा हूँ, मैं ऐसा कह सकता था लेकिन मैंने कुछ और ही कहा।

“सुरभि को हनीमून के लिए ‘ससुराल’ जाना है,” मैंने बताया। “उसी के ट्रैवल का खर्चा देख रहा हूँ।”

“इसका क्या मतलब हुआ?” सबने सुरभि की ओर देखा। तब सुरभि के चेहरे पर आए भाव तो मैं समझा नहीं, लेकिन हँसी बहुत आई।

“दरअसल उसे नैनीताल देखना है,” मैंने पूरी बात बताई।

“तो ऐसे बोलो न,” अमृता ने मुझे थोड़ा हड़काया।

“कहाँ जाओगे तुम? ऑफिस से लीव मिली? और स्कूल की लीव का क्या?” पापा ने सवालों की बौछार कर दी।

“मैं नैनीताल का सोच रहा हूँ,” मैंने कहा। “आज ऑफिस से लीव ले लूंगा। वैसे, वहाँ से सबसे करीब रेलवे स्टेशन कौन सा होगा?”

“एक तो काठगोदाम है लेकिन रामनगर में ज़्यादा बेहतर होगा,” पापा ने बताया। “रामनगर और नैनीताल के बीच रास्ते में जिम कोर्बेट नेशनल पार्क भी है।”

“भाभी मुझे दिखाओ न कोर्बेट पार्क,” अमृता ने सुरभि को झकझोरते हुए कहा। “मैं गुड गर्ल हूँ न? मुझे भी ले चलो।”

“ड्रामा मत करो अमृता,” मम्मी ने उसे डांटा। “और कौस्तुभ तुम्हें ऑफिस के लिए देर नहीं हो रही?”

मैंने घड़ी देखी तो पाया कि मैं 15 मिनट लेट हो गया था।

“चलो सुरभि,” मैं हड़बड़ाया। मैं सुरभि के साथ बाइक लेकर निकला, उसे स्कूल छोड़ा और ऑफिस के लिए निकल गया। गनीमत थी कि मैं फिर भी समय पर पहुंच गया।

क्रमशः

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