गृहप्रवेश, मुँहदिखाई आदि सभी रस्में हो चुकी थीं और मेहमानों को पार्टी भी दे दी गई थी। अंत में सुहागरात बची थी। बेडरूम के अंदर अमृता सुरभि को और बाहर प्रतीक मुझे छेड़ रहे थे।
“अब क्या करने का सोचा है?”
“तुम अपने घर जाओ,” मैं खीजते हुए बोला। “माना कि तुम दोस्त हो पर अब इतनी रात को यहां रुकना सही नहीं होगा।”
“एन्जॉय, माय बॉय,” कहकर प्रतीक हँसते हुए चला गया।
मैं अंदर आया।
“चलो, जाओ यहां से,” मैं बोला।
“क्यों? कहाँ भेज रहे हो भाभी को? अब तो ये उनका भी कमरा है,” अमृता ने हँसी रोकते हुए कहा।
“तुम्हें भगा रहा हूँ,” मैंने गुस्सा दिखाते हुए कहा। “अब अच्छी बच्ची बनो और यहां से निकलो।”
“तुम्हें पता है न कौन भैया है और कौन दीदी,” अमृता मेरे करीब आई। “सिंपल बात ये है कि वो भाभी हैं लेकिन तुम हमेशा कौस्तुभ रहोगे। समझे?” वह चली गई।
***
“तुम्हें तो पता ही है वो कैसी है,” अमृता के जाने के बाद मैं खिसियाया। सुरभि ने मुझे इशारा किया कि मैं बेड पर आऊं। मैं शरारत से मुस्कुराते हुए बेड पर आया।
“जो मैं कहूँ वो तुम कर तो लोगे न?” सुरभि ने पूछा। मैंने सिर हिलाया।
“लेट जाओ,” उसने कहा। मैं लेट गया।
“अब आँखें बंद करो,” उसने लाइट ऑफ करते हुए कहा। “और सो जाओ।”
ऐसा कहते हुए वो भी लेट गई। मैं झटके से उठ बैठा और लाइट ऑन की।
“यार ये हमारी पहली रात है,” मैंने चिढ़ते हुए कहा।
“कम ऑन कौस्तुभ। हम क्या पहले कभी इंटिमेट नहीं हुए? वैसे भी मुझे थकान हो रही है। अब सो भी जाओ,” सुरभि ने आँखें बंद किये हुए कहा। “वैसे भी सुबह काफी काम करने है।”
“क्या काम है?” मैंने पूछा। लेकिन मुझे जवाब देने से पहले ही वह सो चुकी थी।
***
“चलो उठो!” सुरभि ने मुझे झींझोड़ते हुए उठाया। “काम करने में मेरी मदद करो।”
“हाँ हाँ,” मैं जागा। तब तक वह अपना सामान निकालने जा चुकी थी। मुझे लगा वह अलमारी में अपने कपड़े रखवाने के लिए कह रही है। अतः मैं उठा और अलमारी खोली।
“ये देखो,” मैं पलटा। “मैंने पहले ही तुम्हारे कपड़े रखने के लिए अलमारी में जगह बना दी है। कैसा लगा…” पूरी बात कहने से पहले ही मैं ठिठक गया।
मैंने देखा कि सुरभि एक छोटा सूटकेस खाली कर रही थी जिसमें से किताबें निकल रही थीं। तब मुझे ध्यान आया कि अरे हाँ, वो भी तो मेरी तरह किताबी कीड़ा है; उसे शेल्फ की ज़रूरत होगी। ये बात मैं शादी का इंतज़ाम करने में भूल गया था। मैंने सुरभि के लिए न तो अपने बुकशेल्फ में जगह खाली की थी और न ही नए बुकशेल्फ का बंदोबस्त किया था।
वह मेरे हाव भाव से समझ गई कि बिस्तर पर फैली उसकी किताबें रखने के लिए मेरे पास कोई जगह नहीं है।
“मैंने तो मम्मी पापा से पहले ही कहा था कि मुझे मेरा शेल्फ ले जाने दो,” वह भुनभुनाई। “लेकिन वे ही पीछे पड़े रहे कि कौस्तुभ सब रखवा देगा। अब रखो मेरी किताबें,” उसने कहा।
“यार पहले कपड़े तो रख लो,” मैंने हैरानी, परेशानी और चिढ़ के मिलेजुले स्वर में कहा। “अभी कारपेंटर बुलाकर नया शेल्फ बनवा दूंगा।”
“अभी तुम्हारी शादी हुए 24 घंटे नहीं हुए और तुमने लड़ाई शुरू कर दी?” झगड़े की आवाज़ सुनकर मम्मी पापा अंदर आ गए। उन्हें जब समस्या बताई गई तो वे हँस पड़े।
“कौस्तुभ, तुम आधा शेल्फ खाली करो और उसमें सुरभि की किताबें रखो,” उन्होंने मम्मी पापा और सास ससुर दोनों तरह के भाव से निर्देश दिए। “तब तक सुरभि खाना बनाएगी। अभी रसोई की रस्म बाकी है। और अमृता तुम कारपेंटर बुलाओ। यहां दो शेल्फ होंगे और तुम दोनों उन्हें आधा आधा शेयर करोगे।”
सुरभि चुपचाप किचन चली गई। मैंने बुकशेल्फ सेट करना शुरू किया। तभी मुझे ध्यान आया कि मैंने अब तक ब्रश भी नहीं किया था।
***
सुरभि ने शाही पनीर बनाया था। मैंने उसके मायके यानी मेरे ससुराल में जब भी कुछ खाया तो वह उसकी मम्मी यानी मेरी सास का बनाया होता था। तब मैंने सुरभि की बनाई हुई छोटी मोटी चीज़ें ही खाई थी पर आज पहली बार कोई ‘डिश’ थी।
“तुम बहुत बढ़िया शेफ हो सुरभि,” मैंने एक बाईट लेते ही कहा।
“क्यों? अगर भाभी ने गोभी या भिंडी वगैरह कोई रेगुलर फूड आइटम बनाया होता तो क्या तब भी ऐसे ही तारीफ़ करते?” अमृता को हमें छेड़ने का मौका मिल गया।
“लेकिन कौस्तुभ को तो गोभी और भिंडी पसंद हैं न?” सुरभि ने टोका।
“क्या भाभी थोड़ा तो मज़े लेने देतीं,” अमृता ने मुँह बनाया। “और हाँ वो कारपेंटर गांव गया है। लॉकडाउन खुलने से पहले नहीं आ पाएगा। शेल्फ जैसा है वैसा रहेगा।”
“क्या यार!”
“धत!”
“अरे परेशान क्यों होते हो?” मम्मी ने कहा। “किताबें कहीं भाग रही हैं क्या?”
“आपको समझ नहीं आएगा,” मैंने खाना खत्म करते हुए कहा। “आज मेरी इस महीने की आखिरी पेड लीव है इसीलिए जो काम हों अभी बता दो।”
सब अपने काम गिनाने लगे और मैं सिर हिलाता रहा।
क्रमशः
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