“प्यार न देखता रंग” के अंतिम एपिसोड में कौस्तुभ और सुरभि की सगाई का वर्णन तो है, लेकिन विवाह का सिर्फ ज़िक्र कर कहानी खत्म कर दी गई है। अतः जहाँ पिछली कहानी खत्म हुई थी, वहीं से अगली शुरू करते हैं:
मार्च 2020 से मई 2021
दिसंबर 2019 में जब हमारी सगाई हुई थी तब से मैं बहुत उत्साहित था। सुरभि बस अपना बीएड पूरा होने का इंतज़ार कर रही थी। उसके बाद अप्रैल में हमारी शादी होनी तय हुई थी।
घर में शादी का माहौल था। इसी दौरान कोविड-19 आया। हम स्वस्थ थे तो फ़िक्र नहीं की। लेकिन जब 24 मार्च को देश भर में लॉकडाउन घोषित हुआ तो हम परेशान हो गए।
शादी टाल दी गई क्योंकि देश बंद था और इसी कारण दिल्ली बंद थी। एक साल से ज़्यादा समय तक शादी टलती रही। शादी कब कर रहे हो, ऐसा अक्सर पड़ोसी पूछते और हँसते। मैं खीजता रहा। सुरभि खीजती रही। हम वायरस को कोसते रहे। इसी दौरान लॉकडाउन थोड़ा खुला। मैं पब्लिशिंग कंपनी में प्रूफरीडर और सुरभि स्कूल में टीचर की जॉब पर लौटे। अंततः अप्रैल 2021 में सरकार ने घोषणा की कि शादी की जा सकती है लेकिन कुल 50 लोगों के ही आने की अनुमति होगी।
“अभी मंदिर में शादी कर लेते हैं,” मैंने कहा। “कभी किसी की सगाई इतने समय तक खिंची है क्या?”
मम्मी पापा ने आपस में थोड़ी बात की, फिर सुरभि के घर फ़ोन कर बात की और राज़ी हो गए। वैसे भी सब इसी का इंतज़ार करते हुए थक चुके थे।
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घर के करीब ही एक मंदिर था। वहाँ के पंडितजी से बात कर मई का मुहूर्त निकलवाया गया। फिर किन मेहमानों को बुलाना है इसपर गिनती शुरू हुई।
“चार तो हम ही हो गए,” पापा ने गिनना शुरू किया। “तीन सुरभि के परिवार से तो 43 बचे। इन्हीं में देख लो तुम्हारे मायके से कौन होंगे।”
“मेरे भाई बहन होंगे उनके फैमिली के साथ तो ये हो गए 8 यानी बचे 35…” मम्मी अपना हिसाब करने लगीं।
“उनमें मेरी बहन के साथ उनके पति और दो बच्चे जोड़ लेना,” सुरभि के पापा बीच में बोले। मैं उन्हें मेहमान गिनते छोड़कर जाने लगा।
“कहाँ भाग रहे हो दूल्हे भाई?” पीछे से अमृता की आवाज़ आई।
“चाय बनाने,” मैंने पीछे देखे बिना जवाब दिया।
“मैं भी आई,” पीछे से सुरभि आ गई।
मैंने उसे सुना तो थोड़ा हैरान हुआ। अभी शादी हुई नहीं और इन्हें ससुराल के किचन में चाय बनानी है, ऐसा सोचकर मैं शरारत से मुस्कुरा दिया। तब तक सुरभि अंदर आ गई थी। उसे किचन में देख मेरी थोड़ी हँसी छूट गई।
“क्या हँस रहे हो?” सुरभि ने मुँह बनाया।
“तुम्हें अभी से ससुराल के किचन में काम करना है?” मैंने हँसते हुए पूछा।
“ससुराल हो या मायका, क्या फर्क पड़ता है? एरिया तो एक ही है,” उसने कहा।
“चलो आज तुम बनाओ,” मैंने कहा। “तुमने कभी इस किचन में कुछ नहीं बनाया।”
“मेरा फियान्से बना लेगा। वैसे भी अभी शादी नहीं हुई है।”
तभी एंग्री यंग गर्ल वहां आई और देखा कि चाय बनाने का सामान शेल्फ में ही है और हमारी ठिठोली चल रही है तो वह गुस्से से चिल्लाई, “मम्मी, चाय बनने में वक्त लगेगा। अभी तो चीनी, चायपत्ती सब शेल्फ में ही है।”
उसके बाद हमें हमारे मम्मी पापा ने खूब सुनाया और अमृता हँसती रही।
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आज मंदिर में हमारी शादी होने वाली थी। दोनों ओर के सभी मेहमान दोपहर तक आ चुके थे। मुझे ऑफिस से और सुरभि को स्कूल से लीव लेनी थी अतः मेरे बॉस और सुरभि के प्रिंसिपल भी मेहमान थे।
दोपहर 3 बजे मंदिर में गणेश पूजन के साथ बरामदे में विवाह की विधियां शुरू हुई।
“वरमाला पहनाइये,” पंडितजी के निर्देश पर सुरभि ने मुझे माला पहनाई जिसके बाद मैंने उसे माला पहनाई। मेहमान तालियां बजाने लगे। यह हर विधि संपन्न होने पर होता। सबसे ज़्यादा तालियां उस समय बजाई गईं जब छठे फेरे के बाद अंतिम फेरा शुरू हुआ। अंत में जब पंडितजी ने कहा कि “विवाह संपन्न हुआ” तो ज़ोर शोर से तालियां बजाई गईं। उसके बाद मंदिर के अंदर सुरभि के साथ मैंने गर्भगृह की परिक्रमा की और महादेव से नए जीवन के लिए आशीर्वाद लिया।
अब हम पति पत्नी थे।
क्रमशः
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