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प्यार न देखता रंग 3 : प्रोपोज़ल

सितम्बर 2012

मैंने मेरी बहन अमृता और दोस्तों प्रतीक, गौरव और राजीव को मिलने के लिए बुलाया। ज़रूरी बात करनी थी।

“दोस्तों को भी बुला लिया? तो मुझसे क्या काम?” अमृता ने चिढ़ते हुए कहा।

“तुम क्यों चिढ़ रही हो? चिढ़ना तो हमें चाहिए। बहन से बात करनी थी हमारा क्या काम?” प्रतीक भी बोला। राजीव और गौरव ने सहमति दी।

“ये बात अभी मम्मी-पापा से नहीं हो सकती,” मैंने कहा। “उन्हें भी कभी बताऊंगा पर पहले तुम्हारा जानना ज़रूरी है।”

“ओह, मुझे पता है क्या हुआ होगा। फिर कोई क्रश और तुरंत ब्रो-ज़ोन। ऐसा ही हुआ न?” राजीव तुरंत नतीजे पर पहुंच गया।

“नहीं,” मैं चीखा। “न ब्रो-ज़ोन हुआ न फ्रेंड-ज़ोन। बात ये है कि.... कि मुझे सुरभि से प्यार का एहसास होने लगा है। आई लव हर। पर समझ नहीं आता कैसे प्रोपोज़ करूँ।”

“वही लड़की न जिसके साथ तुम स्कूल में बैठते हो?” गौरव ने पूछा। अमृता मेरी ओर हैरानी से देखने लगी।

“मतलब अमृता के लिए एक और पॉसिबल भाभी? कौस्तुभ तुम किस दुनिया में हो?” प्रतीक ने कहा।

“सुरभि जैसी भी है, मुझे पसंद है। यही बताने के लिए मैंने तुम्हें बुलाया है।” मैंने कहा।

“तुम अब तक उससे फ्रेंड-ज़ोन नहीं हुए?” अमृता ने पूछा। “वो वही लड़की है न जिससे तुम मुझे कल कैंटीन में मिलवाना चाहते हो?”

मैंने हाँ में सिर हिलाया।

“तो क्या तुम चाहते हो कि मैं उसे बताऊं कि तुम उसे प्यार करते हो?”

“नहीं। वो तो मुझे ही करना है।”

“पहले उसे अपने प्यार के बारे में बताओ। उसके बाद ही कभी मैं उस से मिलूंगी,” अमृता ने घोषणा की। “तुम खुद सोचो कि उसे कैसे प्रोपोज़ करोगे।”

सभी चले गए और मैं अकेला बैठा सोचता रहा कि क्या करूँ।

सीधे कह देता हूँ। यही सही रहेगा।

***

अगले दिन लंच खत्म कर मैंने थोड़ा झिझकते हुए सुरभि से कहा, “मुझे कुछ बात करनी है, सुरभि। तुम मेरे साथ बाहर चल सकती हो? ग्राउंड में?”

“ऐसी भी क्या बात है? कुछ प्राइवेट है?” उसने पूछा। मैंने सिर हिलाया।

हम बाहर ग्राउंड में पहुंचे। “अब बताओ, क्या बात है?” सुरभि ने कहा। मैंने चारों ओर देखा।

“उधर सही रहेगा,” मैंने ग्राउंड के कोने में इशारा किया। फिर मैंने ध्यान दिया कि सुरभि कुछ असहज हो रही थी। “प्लीज सुरभि,” मैंने कहा। मैं उसे हाथ पकड़कर ले जाना चाहता था पर मुझे झिझक हो रही थी।

“ठीक है। चलो,” उसने जैसे मेरा मन पढ़ लिया था। वह खुद ही वहाँ चल दी। मैं उसके पीछे आया। “तुम मुझे यहां प्रोपोज़ करने लाए हो, है न कौस्तुभ?” उसने मेरा मन जैसे पढ़ लिया था। मैंने झिझकते हुए सिर हिलाया।

“सुरभि, मैं... तुम्हें चाहने... लगा हूँ,” मैं जैसे-तैसे सिर्फ इतना ही कह सका।

“बस इतना ही। क्या इस तरह प्रोपोज़ किया जाता है?”

“मुझे... प्रोपोज़ल नहीं... आता...”

“कौस्तुभ, अगर ये मज़ाक है, तो प्लीज मत करो। मेरे साथ ऐसा मज़ाक पहले भी हो चुका है और मुझे तुमसे ऐसी उम्मीद नहीं है। तुम्हारे पास अभी भी माफ़ी मांगने के लिए वक़्त है।”

“पहले हो चुका है मतलब?” मैंने हैरानी से कहा। “क्या तुम्हें पहले भी किसी ने प्रोपोज़ किया था?”

“प्रोपोज़ मैंने किया था। मुझे पुराने स्कूल में एक लड़के पर क्रश था। मैंने उसे ये बताया तो उसने कहा कि वह मुझे बहन मानता है। साँवली लड़कियां बहन ही होती हैं,” सुरभि ने कड़वाहट से कहा।

“तुम सिर्फ अपनी त्वचा की रंगत की वजह से मुझे मना कर रही हो?” मैंने पूछा। तब तक घंटी बज गई और सुरभि चल दी। कुछ सेकंड मैं उसे जाते देखता रहा और क्लास याद आते ही अंदर भागा।

***

हमने स्कूल खत्म होने तक कुछ बात नहीं की। मुझे वह बात के मूड में नहीं लग रही थी। छुट्टी के बाद जब हम बाहर निकले, तो मैंने ध्यान दिया कि उसने घर जाने के लिए दूसरा रास्ता लिया था। मैं उसके पीछे गया।

“रुको सुरभि,” मैंने उसे आवाज़ दी। वह मेरी ओर मुड़ी।

“तुम अपने बारे में ऐसी रेसिस्ट बात कैसे कह सकती हो? सिर्फ उस सिस-ज़ोन की वजह से?” मैंने कहा।

वह चुप रही।

“देखो सुरभि, अगर तुम मुझे बॉयफ्रेंड नहीं बनाना चाहती तो कम से कम फ्रेंड-ज़ोन या ब्रो-ज़ोन मत करना,” मैंने कहा और अचानक मुझे ध्यान आया कि मैंने उसे इग्नोर कर अपनी बात कह दी थी। “माफ़ करना, मैंने अपनी बात पहले कह दी।”

“तुम्हारा मतलब राखी-ज़ोन? तुम राखी-ज़ोन हुए हो?” उसने नर्म होते हुए कहा।

“बहुत लम्बी कहानी...” मैं पूरी बात कहता उससे पहले अमृता मुझे ढूंढ़ते हुए वहाँ आ गई। “सॉरी, हमें घर जाना है,” उसने सुरभि से कहा और मुझे घसीटते हुए ले गई।

कहानी ज़ारी है...

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