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प्यार न देखता रंग 1 : क्रश

जुलाई 2011

वो शायद जुलाई का दूसरा हफ्ता था और गर्मी हम दिल्ली के लोगों को भून रही थी जब मैंने मैथ्स और साइंस पढ़ने के लिए एक कोचिंग सेंटर ज्वाइन किया। साइंस में मैं हमेशा अच्छा रहा था, पर मैथ्स में मैं बचपन से बहुत ख़राब रहा था। अत: मैं यहां क्लासरूम में बैठा था और अरुण सर को सुन रहा था, जो पॉलिनोमीयल पढ़ा रहे थे और सब मेरे सिर के ऊपर से जा रहा था। तभी मेरे बगल में बैठे अंकुर ने कोहनी मारी।

“कौस्तुभ”, वह फुसफुसाया।

“बाद में बात करें?” मैंने कहा।

“नेहा को देखो”, मुझे नज़रअंदाज़ करते हुए उसने एक लड़की पर इशारा किया। “कैसी लगती है वो तुम्हें?”

मैंने नेहा की ओर देखा और मेरा ध्यान उसपर चला गया। क्या होता अगर मेरी एक गर्लफ्रेंड होती, मैंने सोचा। शायद मुझे नेहा पर क्रश होने लगा था। पर मैं नहीं जानता था कि अंकुर के दिमाग में क्या खिचड़ी पक रही थी।

एक हफ्ते में मैं नेहा पर आकर्षित हो चुका था। अलग बात ये थी कि मैंने अब तक उससे कोई बात नहीं की थी। पर मैंने किसी से इस बारे में कुछ बात नहीं की।

***

अगले हफ्ते जब हम क्लास के बाद कोचिंग सेंटर से निकले, अंकुर ने तेज़ आवाज़ में कहा, “दोस्तों, देखो क्या हुआ है।”

मैं अपनी जगह पर जम गया।

“क्या हुआ?” किसी ने पूछा।

“कौस्तुभ को नेहा से प्यार हो गया है”, अंकुर ने घोषणा की। मैं अपनी जगह पर हैरानी से उसे देखता रह गया।

इसे कैसे पता चला?

“नहीं नहीं ऐसा कुछ नहीं है”, नेहा ने कहा। “तुम्हें कुछ गलतफहमी हुई है। कौस्तुभ मेरे भाई जैसा है।”

उसकी जिंदगी में मेरी यह जगह थी। बिना किसी बातचीत के मैं उसका भाई था जबकि वो मुझे ठीक से जानती भी नहीं थी।

पर मैं भी उसे कितना जानता था?

“ओह नहीं।”

“ये सही नहीं है।”

“वो तुम्हारा भाई नहीं नहीं है।”

हर कोई हमारे बारे में कुछ न कुछ कह रहा था। नेहा किसी पर ध्यान नहीं दे रही थी लेकिन मैं ध्यान से सबको सुन रहा था, यह सोचते हुए कि उसने मुझे ‘भाई’ क्यों कहा था। आखिर हम वहाँ पहुंचे जहाँ से हमारे रास्ते अलग होते थे। मेरे घर जाने के दो रास्ते थे और इस बार मैंने लम्बा रास्ता लिया।

अगले दिन स्कूल में मैं सारा समय सोचता रहा कि आज कोचिंग सेंटर में क्या होगा। शाम को जब मैं कोचिंग सेंटर पहुंचा, किसी ने मुझसे नेहा के बारे में नहीं पूछा। अंकुर ने भी उसके बारे में बात करने की जहमत नहीं उठाई।

मई 2012

नेहा से ब्रो-ज़ोन होने के कुछ दिन बाद, थोड़ा अब भी अजीब लगता है, मुझे दो और लड़कियों पर क्रश हो गया था। एक स्कूल से थी – खुशी, और एक लड़की दूसरे कोचिंग सेंटर से – शैली। हाँ, मैंने कोचिंग सेंटर बदल लिया था। मुझे वहां नहीं रहना था जहाँ मेरी क्रश मुझे भाई कहती।

हाँलाकि अब, जब मैं दसवीं की पढ़ाई पूरी कर चुका था, अब रिजल्ट आने तक मेरे पास काफी समय था। यह सोचने के लिए कि मेरा क्रश किसपर है। मेरा बचपन का दोस्त प्रतीक अक्सर कहता, “कौस्तुभ, क्यों बेवकूफ बन रहे हो? गर्लफ्रेंड चाहिए तो पहले तय करो कि प्यार किस से करते हो।”

रिजल्ट आया। सीबीएसई के सीसीई सिस्टम से मुझे औसत मार्क्स मिले थे। अब तक मैं तय कर चुका था कि मुझे न शैली में इंटरेस्ट है और न ही खुशी में। अगर मैं क्रश को लेकर कंफ्यूज न होता तो शायद मुझे बेहतर मार्क्स मिले होते, क्योंकि मैंने काफ़ी समय शैली और खुशी के बारे में सोचने में लगा दिया था।

मैंने मेरे पुराने स्कूल में आर्ट्स में दाखिला लिया। मम्मी चाहतीं थीं कि मैं कॉमर्स पढ़ूं लेकिन मैं मैथ्स नहीं पढ़ना चाहता था। यहां कुछ चेहरे नए थे, और कुछ जाने पहचाने, लेकिन एक अकेली बैठी लड़की पर मेरी नज़र टिक गई। उसका कद शायद मेरे जितना था और रंगत थोड़ी साँवली थी। वह अभी से पढ़ रही थी और चेहरे के भाव बता रहे थे कि वह कितनी पढ़ाकू थी। मुझे यकीन था कि वह पढ़ाकू थी क्योंकि सीसीई स्कीम आने से पहले मैं भी काफ़ी पढ़ाकू हुआ करता था।

कहानी ज़ारी है...

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